आचार्य डॉ0 दिनेश चंद्र भारद्वाज जी का बाल्यकाल से ही आध्यात्म एवं संस्कृति से लगाव होने के कारण आज हिंदू समाज में अलग पहचान बनाई और समाज को एक नई दिशा प्रदान करने में नित नए प्रयास करते रहते हैं | आप श्री शिव महापुराण, श्रीमद् भागवत, श्रीमद् देवी भागवत, श्री राम कथा, सूर्य पुराण आदि कथाओ के सरस एवं ओजस्वी कथावाचक हैं | बाल्यकाल से ही भारतीय संस्कृति एवं भाषा के प्रति विशेष रुचि होने के कारण आचार्य जी को संस्कृत विषयों का अद्भुत एवं श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त है |
आचार्य डॉ0 दिनेश चंद्र भारद्वाज जी का जन्म 5 मई 1977 को देवभूमि उत्तराखंड के जनपद अल्मोड़ा स्थित रानीखेत के गाड़ी ग्राम में पं0 स्व0 भवानी दत्त जी के धर्मनिष्ठ पुत्र श्री देवीदत्त जी एवं भगवती देवी जी के घर में हुआ | आपकी प्रारंभिक शिक्षा कानपुर में हुई | बाल्यकाल से ही तीव्र बुद्धि और आध्यात्मिक संस्कृति के प्रति लगाव होने के कारण उनके पिताजी ने 1988 में श्री राम संस्कृत विद्यापीठ श्री राम मंदिर रानीखेत में आश्रम पद्धति के रूप में गुरु जी श्री श्री 1008 श्री मौनी महाराज जी के सानिध्य में उत्तरमध्यमा (12वीं) तक अध्ययन किया तत्पश्चात् संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से शास्त्री, आचार्य, बीएड., पीएचडी की उपाधि अर्जित की | काशी में ही वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यती जी का आशीर्वाद प्राप्त कर संस्कृत के अनेकों वैदिक तथा पौराणिक विषयों का अध्ययन किया | आचार्य जी ने डॉ0 चन्द्रकान्तदत्त शुक्ल, डॉ0 शिवप्रकाश द्विवेदी, डॉ0 अनिल शर्मा आदि अपने कुछ मेधावी सहपाठियों के साथ मिलकर जन-जन में संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए चातुर्वेद संस्कृत प्रचार संस्थानम् की नींव रखी | आचार्य जी ने समाज में ज्योतिष-कर्मकांड, संगीत, योगाभ्यास आदि के अनेकों शिविर लगाकर जनचेतना फैलाई | आपके चतुर्मुखी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर समाज ने आचार्य जी को आचार्य डॉक्टर दिनेश चंद्र भारद्वाज जी (वेदपाठी) के नाम से प्रसिद्धि दी |
अल्मोड़ा जिले के रानीखेत स्थित गाड़ी ग्राम के ब्राह्मण कुल के श्री भवानी दत्त जी के चार पुत्रों में अटल स्नेह एवं प्रेम होने के कारण आचार्य डॉ0 दिनेश चंद्र भारद्वाज जी को अपने ताऊ जी एवं ताई जी के सानिध्य में बाल्यकाल का जीवन बिताने का सुअवसर प्राप्त हुआ और यहीं पर आपकी प्रारंभिक शिक्षा भी पूर्ण हुई | आचार्य जी के छोटे भाई श्री कैलाश चंद्र भारद्वाज जी ने बहुत कम उम्र में, अध्ययन काल में ही शिक्षा का त्याग कर सन्यास ले लिया और संस्कृति एवं समाज के कल्याण के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया | स्वयं आचार्य जी ने काशी में अनेक स्थानों पर कथा - उपदेश - वास्तु - ज्योतिष कर्मकांड के माध्यम से जनसेवा प्रारंभ कर दी | विभिन्न प्रांतों - जिलों - कस्बों में संस्कृत संभाषण शिविरों, योग शिविरों, गौ सेवा आदि से मानव मात्र में चेतना जगाई |
आचार्य जी सदैव मानव कल्याण के लिए कुछ ना कुछ करते रहते हैं इसी उद्देश्य की पहली कड़ी में आपने “अनंत श्री धर्म प्रचार संस्थानम्” की स्थापना की | आप श्री हरि संकीर्तन मंडल धामपुर से भी बहुत लंबे समय से जुड़े हैं | आचार्य जी द्वारा “श्री हरि पंचांग” का भी प्रतिवर्ष प्रकाशन किया जाता है | आचार्य जी श्रीमद् हनुमत् भक्ति प्रचार मंडल के संस्थापक भी हैं साथ ही आचार्य जी ने सन् 2017 में “अनंत नियति वर्ल्ड पीस चैरिटेबल ट्रस्ट" की स्थापना की एवं “अनंत श्री शिव शक्ति पीठ तथा संस्कारशाला” के माध्यम से बच्चों को संस्कृत, संगीत, संस्कृति का नियमित प्रशिक्षण देते हैं और बच्चों को भारतीय संस्कृति एवं देशभक्ति के प्रति जागरूक करते हैं | आचार्य जी अपने कार्यक्रमों की गतिविधि से समाज में फैली कुरीतियों एवं रूढ़िवादी सोच को दूर करके समाज में नए परिवर्तन लाने की भूमिका निभाते हैं | परम पूज्य श्री श्री 1008 महंत श्री पशु पति भारती जी सिद्ध पीठ कालिका रानी खेत का भी शुभ आशीर्वाद निरंतर आचार्य श्री को प्राप्त है |